Thursday, 12 February 2015

एक था विशालकाय पेड़, दूसरी थी नाजूक लचीली लता।


नदी किनारे विशाल वृक्ष, तन कर खड़ा हुआ।
नदी में बाढ़ आ गयी, लहरो के थपेड़े को पेड़ सह न सका।

भरमराकर गिर गया, उसी पेड़ के इर्दगिर्द लिपटी हुई लता,
जैसे की बाढ़ का प्रकोप शांत, लता फिर से इधर - उधर फैलने लगी,
कारण पेड़ ने झुकना, समझौता करना नहीं सीखा था।

लता का गुण लचीलापन, सांमजस्य पन,
वह फिर लहराती रही और अपने असतित्व को साबित करती रही।

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