"बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ",इसके लिए मुहीम चलानी पड़ रही है।
इतनी नकारात्मक सोच हम भारतीयों की, बेटी भार और बोझ समझना।
जब तक संतान बेटा न हो जए, परिवार को संपूर्ण नहीं माना जाता।
पूर्वजों को पानी देने का, पिंडदान करना, सार्थक बेटा ही कर सकता है।
हमारे यहाँ, जहाँ माँ के रूप में देवियों को पूजा जाता है,
वहाँ इस तरह की सोच धन, शिक्षा, शक्ति का प्रतीक माता ही है।
बेटी को बचाना भी जरूरी है और पढ़ना भी,
नहीं तो सामाजिक सरंचना को नष्ट होते देर नहीं लगेगी।
धरती माता की बेटियों के साथ अन्याय नहीं होना चाहिए।
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