पीकू पिता-पुत्री के सम्बन्धो को पेश करती फिल्म
माँ-बाप की मजबूरियां की बेटी को दुसरो के घर भेजना
मज़बूरी और धारणाओं को तोड़ती
हर व्यक्ति को व्यक्तित्व का विकास करने का हक़
औरत क्यों इतनी मजबूर की उसकी मंजिल शादी पर जाकर खत्म हो
उसके माँ-बाप मजबूर क्यों?
समाज को अपना नजरिया बदलना पड़ेगा हमारे समझ में जहा बीटा
खानदान का चिराग और बेटी को पराया धन माना जाता है वहा पीकू सहज रूप से
इन साड़ी धारणाओं को तोड़कर सन्देश देती है।
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