इतनी बडी बडी गगनचुंबी इमारते, इतने सुंदर नक्काशी जालीदार झरोखे,
यह उन मजदूरो की मेहनत है जो जान की परवाह किए बिना बॉस खपच्ची पर चढ सीमेंट गारे से इनको बनाया होगा, उनके पास न रहने को घर, सडक पर ही तंबू डालकर रहना,
ईमारत बन जाने पर अगला डेरा और कहीं, सडक पर रहना,
सोना और मर जाना, उन मजदूरो को कोई याद भी नहीं करेगा,
विकास और निर्माण मे इनकी भी भागीदारी है,
सोना और मर जाना, उन मजदूरो को कोई याद भी नहीं करेगा,
विकास और निर्माण मे इनकी भी भागीदारी है,
चाहे वह सडके हो ,पुल हो हाईवे हो मॉल हो या फिर स्मार्ट सिटी हो,
लोग भूल जाते है इन्हे, ईनकी मेहनत न होती तो विकास न होता,
निराला जी की पंक्ति, वह तोडती पत्थर देखा मैंने इलाहाबाद के पथ पर.
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