एक व्यक्ति जो मरणासन्न ,अचेतन अवस्था में पडा हुआ है उसका जीना या न जीना कोई मायने नही रखता ,एक वक्त के बाद अपने भी ऊब जाते हैं
कोई कितना दूसरे को संभालेगा ,संभालते संभालते उनकी जिन्दगी भी बदतर होती जाती है
वह न जी पाता है न मर पाता है
किसी एक व्यक्ति के कारण उनकी जिन्दगी दुरूह बन जाती है ,जिन्दा रहने के लिए दवाई ,खाना पीना इत्यादि खर्च जो कि उनके बूते के बाहर हो
लोग सालो साल बिस्तर पर निर्जीव से पडे रहते हैं
अगर ऐसी अवस्था है तो इच्छा मृत्यु ही इसका एकमात्र विकल्प है
कानून में इसको मान्यता मिलनी चाहिए बशर्ते कि उसका दुरुपयोग न हो
जैन धर्म में संथारा और हिन्दू धर्म मे वानप्रस्थ इसी का एक प्रकार है
कुछ देशों में इसे मान्यता प्राप्त है हमारे देश में भी इस पर विचार होना चाहिए
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Tuesday, 15 September 2015
इच्छा मृत्यु का अधिकार - एक संवेदनशील पहलू
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