भावेश नकाटे २१ वर्ष का यह युवा अपने जान से हाथ धो बैठा क्योंकि वह भीड भरी ट्रेन में प्रवेश नहीं कर पाया
यह केवल एक दिन की घटना नहीं हर रोज दो चार घटनाए होती है
मुसाफिर अपनी जान पर खेल कर सफर करते हैं
अगर भीड थी तो ट्रेन दूसरा पकडना था पर हर ट्रेन ऐसी ही भरी हुई आती है
सबको काम पर जाना होता है
लोग मजबूरी में लटकते हुए प्रवास करते हैं नहीं तो पूरा दिन प्लेटफॉर्म पर ही बैठे रह जाएगे
क्या महिला क्या पुरूष सुबह और शाम के समय बाहर तक लटकते दिखाई देगे चलती ट्रेन में
मौत का सिलसिला बदस्तूर जारी है
एक हँसते खेलते युवक की मृत्यु का इस तरह वीडियों आना रोगंटे खडा कर देता है
वीडियों में साफ दिखाई दे रहा है कि युवक किस तरह प्रयत्न कर रहा है अंदर जाने की और आखिर कार हाथ छुट जाता है
कब तक ऐसा होता रहेगा
घर का सदस्य जब तक घर नहीं आ जाता तब तक डर समाया रहता है
लोग छत पर या खिडकी पकड कर यात्रा करने पर मजबूर है
और यह बात सरकार को भी मालूम है
कोई तो इसका हल निकाला जाय
कब तक लोग इस तरह अपनी जान जोखिम में डाल कर सफर करते रहेंगे
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Sunday, 29 November 2015
कब तक मुंबई की लाइफ लाइन कही जाने वाली लोकल लाइफ लेती रहेगी
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