सामने सूर्यदेव अस्त हो रहे थे खानोशी छाई हुई थी
पेड -पौधै सब शॉत खडे थे
कभी -कभी थोडा सा हिल उठते थे
पत्तों में रूक रूक कर सरसराहट हो जाती थी
ऐसा लग रहा था नीरवता ही जीवन है
जीवन भी शायद ऐसा ही है
जब जन्म होता है तो खुशियॉ मनाई जाती है
गाजे -बाजे और मिठाईयॉ बॉटी जाती है
आए हुए मेहमान का खुशी -खुशी स्वागत किया जाता
वही सांध्य बेला में थम सा जाता है
चारो तरफ शॉति छा जाती है
पास रहकर भी कोई पास नहीं रहता
अपने ही अपने नहीं रह जाते
सब स्वंय में रम जाते हैं
उनका अपना भी तो जीवन है
मन में कुछ चलता रहता है
कभी जीवन का इंतजार रहता था तो कभी मृत्यु का
जब स्वंय का शरीर ही साथ न दे तो दूसरे से कैसी अपेक्षा
पता नहीं कैसे अमरता का वरदान चाहते थे
क्या होगा अमर होकर
उदय के साथ अस्त भी तो होना है
वाणी जो एक समय गर्जना करती थी लडखडाने लगती है
अर्जुन की गांडीव तो वही थी परएक समय आया कि भीलों ने छीन ली
अश्वस्थामा की आत्मा आज भी भटक रही है
देखा जाय तो जीवन का मतलब आना और जाना है
इसलिए तो हमारे यहॉ डूबते सूर्य को भी छठ पूजा नें अर्घ्य दिया जाता है.
यह समय है जो सुबह पूर्व में अपनी भरपूर लालिमा लेकर उदय होता है उसी को अस्ताचल का रास्ता भी दिखा दिया जाता है
अस्त तो हो रहे हैं भगवान भास्कर पर सबको उर्जित कर
यह नहीं भूलना है कि प्रकृति का चक्र है यह .
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