आज पीठ पर बोझ ढो रहा है बचपन
हर गली -मुहल्ले में सुबह -सुबह बचपन को घसीटते मॉ -बाप दिखाई दे जाते हैं
मासूम बचपन को तो यह भी पता नहीं कि वह क्या कर रहे हैं
रोते -रोते चल रहे हैं
ऊपर से रास्ते में भी उन्हें स्पेलिंग रटना और पहाडे सिखाते हुए दिख जाते हैं
दो -ढाई साल से ही वह चल पडते हैं जीवन निर्माण की दिशा में
अब कहा जा रहा है बच्चों का बोझा कम करो
उनके कंधों को समय से पहले मत झुकाओ
पढाई करने के लिए होनी चाहिए
न कि परशन्टेज में तौलने के लिए
न जाने कितने फेलियर बडे-बडे मुकाम हासिल कर चुके हैं
और न जाने कितनों की राह को इस फेल और पास के चक्कर ने रोका है
डिग्री मिली भले वह नकल की हो
और कुछ जीवन भर परीक्षा ही देते रह जाते हैं
बचपन को बोझ नहीं बनने देना है
फिर वह चाहे बैग का हो या पढाई का
खुल कर जीने दे
शिक्षा जरूरी और अनिवार्य है पर कुछ खोने के लिए नहीं
पाने के लिए ,जीवन बनाने के लिए
बचपन बोझिल नहीं हर परेशानी से दूर चंचलता से परिपूर्ण हो
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