Sunday 31 July 2016

दंगों की आग में हाथ सेकने वालों से सावधान

शहर में चुलबुलाहट और खुसफुसाहट थी
कुछ जगह आग लगी थी
मुहल्लों में द्वेष पनप रहा था
आग लगी हुई थी ,यह दिखाई दे रहा था
पर यह आग इतनी जल्दी मेरे दरवाजे तक पहुँच जाएगी
और झकझोर देगी मुझे और परिवार को

दूर कोसों से आ रही स्फोट की आवाज पास आने लगी
धीरे- धीरे
कानों के परदे फटने लग गए थे
खून डर से जमने लगा था
कुटुंब की चिंता सताने लगी थी

स्फोट हुआ ,जगह- जगह रक्त ही रक्त
विनाश का तॉडव
अब चर्चा होगी
आग किसने लगाई
बारूद- बम कहॉ से आया
किस संगठन का हाथ है
कौन शह दे रहा था

आग के साथ गीले के साथ सूखा भी जलता है
निरपराध लोग मारे जाते है
जिनका कुछ लेना- देना नहीं
दुख तो इस बात का है कि
संपूर्ण जंगल जल कर राख होने पर
हमें अहसास होता है

अगर चिंगारी भडकने के पहले ही बुझा दी होती तो
लोगों का यह हाल नहीं होता
कभी धर्म,कभी जाति ,कभी किसी और कारण
देश सुलग रहा है
आग भडक रही है
यह विकराल रूप न ले ले
इससे पहले ही बुझा दिया जाय
आग में हाथ सेकने वालों से दूर रहा जाय

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