Saturday, 23 July 2016

बारीश

बारीश की बूंदे गिरती तड- तड
मन मयूर नाचता है झम- झम
उमंगों ने ली है अंगडाई
पेड- पौधे लगे डोलने ,पंछी भागे दुबक घोसले में
सब लगे ढूढने अपने रैन - बसेरे
हवा लगी भागने
बिजली लगी गरजने
बादलों की कडकडाहट- गडगडाहट
जमकर बरसने का करती ईशारा
तन- मन भीगने लगे
धरती पानी- पानी होने लगी
गर्मी की तपन बुझने लगी
शीतलता की फुहारे भिगोने लगी
सब कुछ भीग रहा है
आंनदित हो रहा है
जल बिन जीवन नहीं
रहती है चार महीने ,इंतजार करवाती आठ महीने
हर बूंद अनमोल है इसका अहसास कराती

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