Tuesday, 5 July 2016

जीवन एक रंग मंच

जीवन एक रंगमंच ,हम सब खिलाडी
हर पात्र अभिनय को तैयार
अपना - अपना रोल निभाने को
तैयारी शुरू ,हर खिलाडी खेलने को तैयार
जीवन का खेल कौन कितना अच्छा खेलेगा
गेंद किसके पाले मे जाएगी
बल्ला किसका घूमेगा
परचम किसका लहराएगा
बचपन से ही रिहर्सल शुरू
कोई सामान्य ,कोई तेज ,कोई फिसड्डी
हर पत्थर को घिसकर हीरा बनना है
उसकी चमक कितनी दूर तक पहुँचती है
यह तो जीवन समाप्त होने पर ही पता चलता है
कुछ याद रह जाते हैं
कुछ समय के बवंडर में खो जाते हैं
कुछ का तेज वर्षों तक कायम
परदा गिरने पर तालियॉ बजना.
नाटक का अंत
कितनी सफलता ,कितनी नाकामी
यह वक्त तय करता है

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