Wednesday, 16 November 2016

अंधेरा भी भला है

यह अंधेरा भाता है
कभी- कभी बहुत थक जाते है उजाले से
उजाला , परेशान करने लगता है
उजाला असहनशील हो जाता है
उजाला यानि काम के लिए तैयार हो जाना
भागमभागी ,जद्दोजहद शुरू
मस्तिष्क में भी हलचल ,दुनियॉ भर के विचार
अनवरत चलता रहने के बाद
विश्राम की जरूरत महसूस तो होती है
यह कार्य करता है अंधेरा
रात को बिस्तर पर जाकर जब ऑख बंद कर लिया जाता है
तब लगता है सुकुन  मिल गया
ऑख बंद करने के बाद नींद भले न आए
पर ऑख खोलने का मन ही नहीं करता
प्रकाश से तकलीफ होती है
अगर अंधेरा न हो तो
पूरे समय हलचल ही होती
पशु,पक्षी से लेकर हर जीव ,मानव तक
रात की नीरवता में शॉति तो मिलती है
सूर्य के तेजोमय प्रकाश के बाद
चंद्रमा की शीतल चॉदनी
कहीं न कहीं तन- मन को विश्रांति दे जाती है
अगर अंधेरा न होता तो
शायद जीवन में माधुर्य न रहता
और ताजगी न होती

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