बस में बैठी थी अगली सीट पर
ट्रेफिक जाम था
बस धीरे- धीरे खिसक रही थी
कुछ आगे निकलने के लिए जद्दोजहद कर रहे थे
बाइक स्कूटर सवार
यहॉ - वहॉ से अपना रास्ता निकाल आगे पहुँच रहे थे
कुछ गाडियॉ रफ्तार में तो कुछ धीमी
जीवन में जिसने भी रफ्तार पकडी
कैसे- वैसे प्रयत्न कर आगे बढा
सफलता तो निश्चित मिलनी है
हॉ, कभी- कभी ज्यादा रफ्तार से दुर्घटना हो सकती है
पर जो चल रहा है उसी ढर्रे पर धीरे- धीरे चले
या रफ्तार पकड आगे बढे
यह तो स्वयं को तय करना है
जिसने भी लीक से हट कर काम किया
खतरों से खेलने की हिम्मत की
वही तो पहचाना गया
कबीर जी ने सही कहा है
जिन खोजा तिन पाइया ,गहरे पानी पैठ
मैं बपुरा बूडन डरा ,रहा किनारे बैठ
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Saturday, 3 December 2016
खतरों के खिलाडी
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