Monday, 19 December 2016

चल पडी जिंदगी

चल पडे सफर की ओर
पहाडों- नदियों पर्वतों की सैर
घर से दूर प्रकृति की ओर
नीला आकाश ,तारों की ओर
सूर्योदय और सूर्यास्त से सानिध्धय की ओर
भीड- भाड ,शोरगुल से दूर
शॉति और आंनद की ओर
मोटरगाडी की पों पों व कर्कश ध्वनियों से दूर
चिडियों की चहचहाअट ,कोयल की कू- कू की ओर
शुभ्र - स्वच्छ वादियों की ओर
रेलगाडी और बस से दूर ,नौकायन की ओर
झर- झर झरते ,झरने की ओर
प्रकृति के हर रूप का आंनद लेने की ओर
सफर हो सुहाना ,हर क्षण - पल नया
चल पडी जिंदगी खुशियों की ओर

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