मैं पत्थर को तराशकर हीरा बनाता हूँ
गुमनामी से बाहर निकालकर पहचान बनाता हूँ
अंधेरों से दूर प्रकाश की ओर ले जाता हूँ
मैं तो वह कुम्हार हूँ जो कच्ची मिट्टी से घडा बनाता हूँ
मैं तो वह मूर्तिकार हूँ
जो बेजान में भी जान भर देता हैंतो वह कलापारखी हूँ
देखते ही पहचान जाता हूँ
अंदर की कला को निखारता हूँ
इंसानियत का पाठ पढाता हूँ
भविष्य निर्माण करता हूँ
देश और समाज की आधारशिला बनाता हूँ
मुझे कम मत ऑको
मैं शिक्षक हूँ
अगर मैं न रहूँ , सब चरमरा जाएगा
मैं तो वही रहता हूँ
पर अपने नौनिहालों को उन्नति के शिखर पर पहुँचाता हूँ
No comments:
Post a Comment