शांति की खोज में भटकता फिरा मैं
पर कहीं शांति के दर्शन नहीं
घर हो या बाहर
बगीचा हो या मंदिर
पर्वतीय स्थल हो या नदी किनारा
प्रकृति तो शांत है
उसकी गूंजती स्वर लहरियॉ,शांति का आभास देती है
पर वह शांति कानफोडू नहीं मनभावन होती है
कानफोडू का निर्माण मनुष्य ने किया है प्रकृति ने नहीं
निर्झर ,सागर ,वर्षा की बूंदे
मन को आहादित कर जाती है
पशु- पक्षियों ,कीट- पंतगों की आवाज
पेड का सरसराना , हवा का डोलना
सृष्टि के दूसरे जीवों की उपस्थिती का अहसास दिलाती मनुष्य और प्रकृति में यही विरोधाभास है
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Tuesday, 6 December 2016
कहॉ है शांति!!!
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