Monday, 13 February 2017

महिलाओं की आजादी का मापदंड क्या ???

नए साल का जश्न मनाने की ईच्छा सालों से मन में
घर में सख्ती ,पाबंदी
बाहर जाने पर लगाम
शराबी ,गर्दुल्ले ,आवारों का भय
छेडछाड से डरना और घर में टी वी पर जश्न मनाते देखना
बारह बजता ,नया साल आता
समाचारों में समुंदर किनारे मौज- मस्ती करते देखना
आखिर पढाई पूरी हो गई
जॉब भी लगी दूसरे शहर में
अबकी बार तो शान से न्यू ईयर सैलिब्रेट होगा
पूरी आजादी ,घरवालों की रोक- टोक नहीं
सहकर्मियों के साथ प्लान बना
पब में गए ,मौज- मस्ती की
बारह कब बज गए ,पता ही न चला
आज आजादी मिली थी
पर देश में लडकियों पर आजादी कहॉ है???
मन प्रसन्न था ,साथियों ने गली तक छोडा
घर पास ही था .
अब किस बात का डर
पर क्या पता था कि दो नराधम घात लगाए बैठे है
बाइक पर सवार आ खीचने लगे
शोर- गुल किया और सामना भी किया
वे तो भाग गए पर आज भी वह याद कर कॉप जाती हूँ
अगर कुछ गलत हो गया होता तो??
दूसरे दिन अखबार की सुर्खिया
नेताओ की टिप्पणियॉ
ये छोटे कपडे पहनती है इसलिए
पर मैंने तो उस दिन पूरे कपडे पहने थे
घर के पास होकर भी कोई शख्श बचाने नहीं आया
अपनी रक्षा स्वयं करनी पडी
हॉ ,अगर कोई अनहोनी घट जाती
तब यही लोग जुलूस निकालते ,नारे लगाते
रास्ता जाम करते ,आगजनी करते
लोग आते- जाते देखते रहते पर बचाने कोई नहीं आता
पर जब कोई निर्भया मौत के मुँह में पहुँच जाती है
तब उसके नाम पर आंदोलन
यही तमाशबीन बाद में तमाशा बनाते हैं
पहले ही संज्ञान लिए होते तो ??
भीड में तो शक्ति होती है
वह पुलिस की लाठी का जवाब पत्थर से देती है
यही सामूहिक शक्ति किसी की रक्षा करने में लगाए
तो कोई निर्भया इन दुराचारियों के दुष्कर्म का शिकार नहीं होगी

No comments:

Post a Comment