Friday, 17 March 2017

जिंदगी गणित नहीं

जिंदगी गणित नहीं
यह तो वह सवाल है जिसका उत्तर कभी नहीं मिलता
जिंदगी का गणित बैठाते - बैठाते जिंदगी बीत जाती है
लेखा-जोखा करते - करते
और लगता है कि अब सब सही हो गया
पर वक्त का ऐसा झटका कि सारी अक्ल धरी की धरी रह जाती है
घोसला बनाते और संवारते तो समय लगता है
पर तूफान को तहस- नहस करते देर नहीं लगती
यहॉ किसको जोडे और किसको घटाए
किसको कोष्ठक में रखे और किससे भाग- गुणा करे????
जिंदगी के गणित में तो २+२=० या फिर २+२= १०
भी हो सकता है
यह तो विधाता तय करता है हम नहीं
क्योंकि कलम और कागज हमारे हाथ में नहीं
ज्योतिषय गणना और विश्वामित्र और वशिष्ट ने राम और सीता की कुंडली का मिलान किया था
राजतिलक का मुहुरत निकला था
पर परिणाम माता कैकयी का आदेश प्रतीक्षा कर रहा था और जनकदुलारी के साथ वन- वन भटकना पडा
पर माता कैकयी को त्याग (-) नहीं सके
द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था पर भीष्म और विदूर जैसे ज्ञानी और बलवान असहाय बने देखते रहे
क्योंकि वह पौत्र दूर्योधन था उसको (-) त्याग नहीं सकते थे
कर्ण को चाहकर भी कुन्ती (+) अपना नहीं बना पाई
दोस्त ,रिश्तेदार ,पडोसी ,बच्चे ,संपत्ति  ,यश सब भाग्य से मिलते है
अटल बिहारी वाजपेयी ने एक बार कहा था
हम पडोसी तो नहीं बदल सकते चाहे वह जैसा भी हो
किसको साथ रखे और किससे दूर रहे यह वक्त तय करता है
बॉस के साथ रहना मजबूरी है क्योंकि नौकरी तो नहीं छोड सकते
नौकरी में बने रहना मजबूरी है क्योंकि पेट का सवाल है
सहकर्मियों से न चाहते हुए भी बनाकर रखना यह भी कार्यस्थल की मांग है
दोस्ती करना चाहे पर सामने वाला तैयार न हो
दोस्त पसन्द न हो पर उसकी बातें और जली- कटी सुनना भी मजबूरी हो सकती है
क्योंकि अकेले कैसे रहे??
खून का रिश्ता मॉ - बाप ,भाई- बहन ,बेटा - बेटी यह हम नहीं चुनते
यह तो ऊपर वाले का आदेश है फिर वह चाहे जैसे भी हो
कहावत है जो किसी से नहीं हारता वह अपनों से हारता है
हॉ एक पति- पत्नी और दोस्त का रिश्ता चुना जा सकता है
पर इंसान की फितरत कब बदले
यह तो कोई नहीं जानता
कदम- कदम पर धोखे मिल जाते हैं
और जब तक सवाल ढूढते है जिंदगी आगे निकल जाती है
कुरूक्षेत्र में गीता का उपदेश देने वाले माधव अपने ही यादव कुल को आपस में लडते - मरते देखते हैं
पर कुछ कर नहीं पाते
जिंदगी का गणित इतना क्लीष्ट है कि इसका उत्तर तो स्वयं ईश्वर के पास नहीं
तो हम तो साधारण इंसान है
एक ही जिंदगी मिली है
कितना गणित बिठाए और कब तक
हॉ जिसके सब सवाल आसानी से हल हो गए उसको तो पूरे अंक मिल गए
पर कुछ पूरी जिंदगी सवाल हल करने का प्रयत्न करते हैं पर वही ढाक के पात
राजा- महाराजा चले गए ,खंडहर यही रह गए
उनकी कहानी सुनाने के लिए
महान गणितज्ञ रावण ने  ने ऐसा गणित बिठाया कि सोने की लंका धरी की धरी रह गई
सवा लाख नाती ,सवा लाख पोते नष्ट हो गए
एक भाई विभीषण के कारण
अगर भीष्म (देवव्रत) को पता होता कि पिता शांतनु की इच्छा पूरी करने का परिणाम महाभारत होगा तो वह कभी वचन ही न देते
अगर शकुनी को पता होता कि बहन गांधारी की अंधे से विवाह का भीष्म से बदला उसका ही कुलनाश होगा
तो वह गॉधार छोडकर हस्तिनापूर  में नहीं रहते
अपना राज्य छोड बहन के घर रहना गांधार नरेशको शोभा नहीं देता था पर ????
जिंदगी तो वह उपन्यास है जिसका पन्ना हर पल बदलता रहता है और मनुष्य नियती के हाथों मजबूर हो जाता है
उसका सारा ज्ञान , गुणा- जोड धरा का धरा रह जाता है और जिंदगी के गणित का सवाल का उसे कभी उत्तर नहीं मिलता

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