मुंबई में एक पुलिस इंस्पेक्टर के बेटे ने मॉ की हत्या कर दी
रक्त से लिख भी दिया कि मैं त्रस्त हो गया था
मॉ से इतनी घृणा
पश्चाताप तक नहीं
क्रोध में हो जाता है हाथापाई में
पर जानबूझ कर
क्या हो गया है हमारी इस पीढी को
इतनी असहनशील
अपनी जान लेंगे या दूसरों की जान
दूसरा कोई वितल्प नहीं बचा इनके पास???
अपना जीवन या किसी और का जीवन मिटाने का अधिकार तो किसी के पास नहीं है
नहीं पढना था मत पढता
घर छोड कर चला जाता
अपने को साबित करता
पर वह कैसे करता
एकलौता बेटा था मॉ- बाप का.
मेहनत- मजदूरी कर नहीं सकते
बाप की कमाई पर ऐश करना
मिटना और मिटाना आसान है
जीवन को खडा करना मुश्किल
यह वारदात पहली भी नहीं है
आए दिन हो रहा है
मारने की सोच- समझ कर रणनीति बनाई जा रही है
और वह भी अपनो की
कभी जायदाद के लिए तो कभी टोकाटोकी के कारण
कोई भी रिश्ता भरोसे के काबिल नही रह गया है
दुश्मन से तो बचा जा सकता है पर अपनों से
घर में भी सुरक्षित नही है
कहॉ जा रहा हौ समाज
नैतिकता का पतन हो रहा है
तब तो यह सब होगा ही
राम का देश है जहॉ मॉ कैकई के कहने पर भाई के लिए गद्दी छोड दी
और भाई भरत ने भी उसे नहीं स्वीकारा
लडाईयॉ हो सकती थी पर नहीं हुई
कब किससे क्या अपेक्षा की जाय
बच्चे आत्मकेंन्द्रित हो रहे हैं
उनको ना सुनना और टोकाटोकी पसन्द नहीं है
वह स्वार्थी हो रहे हैं.
परिवार खत्म हो रहे हैं
जब समाज व्यक्ति केन्द्रित होगा तो ऐसी घटनाएं भी होगी
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Friday, 26 May 2017
इतना आक्रोश कि मॉ की जान ले ली
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