Friday, 26 May 2017

इतना आक्रोश कि मॉ की जान ले ली

मुंबई में एक पुलिस इंस्पेक्टर के बेटे ने मॉ की हत्या कर दी
रक्त से लिख भी दिया कि मैं त्रस्त हो गया था
मॉ से इतनी घृणा
पश्चाताप तक नहीं
क्रोध में हो जाता है हाथापाई में
पर जानबूझ कर
क्या हो गया है हमारी इस पीढी को
इतनी असहनशील
अपनी जान लेंगे या दूसरों की जान
दूसरा कोई वितल्प नहीं बचा इनके पास???
अपना जीवन या किसी और का जीवन मिटाने का अधिकार तो किसी के पास नहीं है
नहीं पढना था मत पढता
घर छोड कर चला जाता
अपने को साबित करता
पर वह कैसे करता
एकलौता बेटा था मॉ- बाप का.
मेहनत- मजदूरी कर नहीं सकते
बाप की कमाई पर ऐश करना
मिटना और मिटाना आसान है
जीवन को खडा करना मुश्किल
यह वारदात पहली भी नहीं है
आए दिन हो रहा है
मारने की सोच- समझ कर रणनीति बनाई जा रही है
और वह भी अपनो की
कभी जायदाद के लिए तो कभी टोकाटोकी के कारण
कोई भी रिश्ता भरोसे के काबिल नही रह गया है
दुश्मन से तो बचा जा सकता है पर अपनों से
घर में भी सुरक्षित नही है
कहॉ जा रहा हौ समाज
नैतिकता का पतन हो रहा है
तब तो यह सब होगा ही
राम का देश है जहॉ मॉ कैकई के कहने पर भाई के लिए गद्दी छोड दी
और भाई भरत ने भी उसे नहीं स्वीकारा
लडाईयॉ हो सकती थी पर नहीं हुई
कब किससे क्या अपेक्षा की जाय
बच्चे आत्मकेंन्द्रित हो रहे हैं
उनको  ना   सुनना और टोकाटोकी पसन्द नहीं है
वह स्वार्थी हो रहे हैं.
परिवार खत्म हो रहे हैं
जब समाज व्यक्ति केन्द्रित होगा तो ऐसी घटनाएं भी होगी

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