आ गया सुहावना मौसम
रिमझिम की सौगात के साथ
तन - मन को आह्लादित करता
बीते लम्हें याद आ गए
वह बारीश में भीगना
वह गढ्ढों में छप- छप करना
कीचड में लोटना
घंटों भीगना
पेड की टहनियों पर लटकना
गिरे हुए आमों को बटोरना
मुंह ऊपर कर बारीश के पानी को गटकना
पानी में नाव चलाना
आगे बढने की दौड लगाना
गिरना ,फिसलना और फिर हँसते हुए उठना
एक - दूसरे पर कीचड फेकना
न जावे कितनी शैतानियॉ
पर मन नहीं भरता था
घंटो मस्ती करना
साईकिल चलाना
फुटबाल खेलना
तैराकी और कुश्ती भी करना
आज बस याद रह गई है
खिडकी से बैठ कर निहार सकते है
बचपन के दिन तो कब के बीत गए
अब तो बच्चों के बच्चों को भीगता देखना
ऑखों में फिर नए ख्वाब उमडना
तमाम खुशियों को इनकी हँसी में तलाशना
मन ही मन मुस्कराना और सोचना
हम भी कभी बच्चे थे
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