Wednesday, 31 May 2017

यह कैसी आजादी - खाने पर भी कानून का साया

क्या पहनू क्या न पहनू
छोटे कपडे या बदन को ढकने वाले
कपडे
घर से बाहर निकलू या न निकलू
कितनी देर बाहर रहू
कब घर आऊ
बडे बाल रखू या छोटे
सब समाज तय करता
अब सरकार तय कर रही है
क्या खाऊ क्या पीऊ
फिर कौन - सी और कैसी आजादी
सबकी ईच्छाओं का ध्यान रखना
किसी की भावना न दुखे
पर हमारी ईच्छा और भावना का क्या
अंग्रजों ने तो हिन्दू - मुस्लिम को पशु के नाम पर अलगाया ही था
कारतूसों में उनकी चर्बी का इस्तेमाल कर
पर अब देश में क्या हो रहा है
कहीं छात्र बीफ फेसिटिवल मना रहे हैं
तो कहीं सरेआम गाय का बछडा काटा जा रहा है
यह आपस में वैमनस्य फैलाने के लिए
हिन्दू धर्म में गाय पूजनीय है पर सब धर्मों में नही
यहॉ तक कि दलित और पिछडी जातियों में उसका इस्तेमाल होता रहा है
नई पीढी को तो कोई फर्क नहीं पडता है
उनको स्वाद और खाने से मतलब है
गाय पूजनीय है पर इस मॉ को बुढापे में क्यों छोड दिया जाता है या बेच दिया जाता है
हम इतने निर्मम क्यों हो रहे हैं
गौ रक्षा हमको करनी है
हर धर्म से इसकी अपेक्षा क्यों करे
मवेशियों का कत्ल कोई नई बात नही है
हिन्दू धर्म में पशुओं की बलि देने का प्रथा रही
सृष्टि का भी यह नियम रहा है
सब प्राणी एक - दूसरे पर आधारित है
फिर इतना विवाद क्यों??
देश को सौह्द्रता के माहौल को बिगाडने की कोशिश
कहीं धर्म के नाम पर लोगों को लडाकर पार्टियॉ अपना वोटबैंक बनाने की कोशिश में  तो नही लगी है????
पहले तो धर्म के नाम पर दंगे - फसाद होते थे
अब तो जातियों को भी लडाया जा रहा है
कब तक इस असुरक्षा के साये में आम इंसान रहेगा

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