कहॉ गए वो दिन जब साईकिल के टायर से होड लगाते थे
उसी में खुश हो लेते थे
कभी कोई तो कभी कोई
पर आज न वे दोस्त रहे न हम
जिंदगी की आपाधापी में बचपन छूट गया
कुछ सपने खो गए कुछ धरे रह गए
नौकरी और गृहस्थी के चक्कर में इस कदर उलझे कि सब भूल गए
आज गाडी भी है और बाईक भी
पर समय नहीं है
सुकुन नहीं है
बस जीवनशैली को आगे बनाने की होड लगी है
उसक् पास इतना तो नेरे पास कितना
जिंदगी चक्रव्यूह बन गई
न समय है न दोस्त है न वह भोलापन है
बस काम है और पैसा है
आगे बढने की और पैसै कमाने नें सारी मासूमियत अलविदा कह गई
न वह लट्टू है बल्कि हमारा जीवन ही लट्टू बन गया
गोल- गोल घूम रहे हैं और जिंदगी घूमा रही है
अब तो कागा भी नहीं दिखता .
इंसान की बिसात ही क्या
सब अपने में मस्त है और व्यस्त है
हम वक्त की रस्सी के आगे नाचवे को मजबूर है
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