Monday, 26 June 2017

बिन घरनी ,घर भूत का डेरा

बचपन में एक कहानी पढी थी
एक आदमी के सात बेटे होते हैं
गरीब है और सब मजदूरी करते हैं
मजदूरी में सबको एक- एक किलो अनाज मिलता है
वह हमेशा चना लेते हैं क्योंकि उन्होंने अपनी झोपडी नें सात चूल्हा बना कर रखा है
शाम को आते हैं भूखे और चने को भूनकर खाते हैं
उनमें से एक बडे बेटे की शादी हो गई थी
गौना नहीं हुआ था पर गौना कराए कैसे??
खाने के तो लाले पडे थे ,एक और को खाना कहॉ से मिलता
गॉव वालों के बहुत कहने पर गौना कराकर लाए
दूसरे दिन सुबह उसको घर पर छोड सब मजदूरी करने निकल गए
नई बहू घर की हालत देख दंग रह गई
सात चूल्हे और चारों तरफ छिलके ही छिलके पसरे हुए
पहले तो अपने भाग्य पर उसे रोना आया पर नियति के आगे क्या कर सकती थी
अब तो उसे इसी घर में रहना है
कुछ सोचा - विचारा और लग गई काम में
पहले तो उसने एक को छोड सारे चूल्हे तोड डाले
फिर घर झाडु से बुहारकर अच्छी तरह से मिट्टी और गोबर से लीपा
कपडे वगैरह व्यवस्थित रखे और सबका इंताजार करवे लगी
शाम को सब भूखे- प्यासे आए और अपने - अपने चूल्हों की तरफ लपके
चूल्हा न पाकर गुस्सा आया
केवल अपने मरद का चूल्हा रखा है
उसने सबको शांत किया ,पानी दिया और कहा कि आप लोग थोडा इंतजार करिए
खाना मिल जाएगा
वह उनसे चने लेकर पडोस में गई और पीस कर लाई
बेसन की रोटी बनाई और कढी बनाई
सबको परोसा
खाकर सब प्रसन्न ,थोडा सुबह के नाश्ते के लिए भी दिया
अगले दिन जब काम से सब वापस आए तो पहले दिन के बचे आटे से वह भोजन बना कर रखी थी
सबने लाकर उसके हाथ में चने दिए
उसके कहने पर दूसरे भी धान्य लाने लगे
घर की कायापलट होने लगी
अब वह अनाज के बदले तेल- मसाला भी खरिदने लगी
सबके अच्छे दिन आ गए
दिन पर दिन हालत सुधरने लगे
अब बूढे पिता को भी काम करने से मना कर दिया
द्वार पर बैठे रहते
चार लोग का आना- जाना होने लगा
एक औरत ने घर की काया पलट डाली
जो पहले खाने के लिए झगडते थे अब प्रेम से साथ बैठकर खाने लगे
घर में अनाज - पैसे आने लगे
सच ही है बिन घरनी ,घर भूत का डेरा

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