Monday, 19 June 2017

पूंछ

पूंछ यह निशानी है पशु होने की
पूंछ खत्म होना यानि विकास होना
पूंछ नहीं रही तो बंदर से मानव बना
हर पशु को अपनी पूंछ प्यारी होती है
यह हथियार भी है उनका
शरीर झाडने से लेकर मारने तक का काम
पूंछ के विविध प्रकार
किसी की लंबी तो किसी की छोटी
किसी की मोटी तो किसी की पतली
किसी की झबरीली तो किसी की चिकनी
पूंछ पर न जाने कितनी कहानियॉ
हाथी ,बंदर ,लोमडी न जाने किनकी - किनकी
कुत्ते की पूंछ पर तो मुहावरा भी
कुत्ते की दूम टेढी ही रहेगी ,चाहे कुछ भी करो
गाय की पूंछ को माथे से लगाना
शरीर के सब अंग में पूंछ का महत्तव भी कम नहीं
भले ही वह कोई बडा काम न करता हो
पुरूष की मूंछ और जानवर की पूंछ
केवल ताव देने और दूम हिलाने के लिए नहीं
उनके असतित्व की पहचान भी है
इसलिए मानो या न मानो
पूंछ तो पूंछ है
पशु की पहचान है
मूंछ आधी नहीं अच्छी लगती
दूम कटी नहीं अच्छी लगती
बल्कि सौंर्दय में चार चॉद लगाती
है पीछे पर रखती आगे
सही है ना
पूंछ तो पूंछ है
इसमें भी दम है

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