Tuesday, 1 August 2017

वाह रे गुलाबो

गुलाबी रंगत , गुलाबी छटा
गोरा - गोरा गाल भी हुआ गुलाब
पूछ रही है पुरवाई
यह कौन - सी परी जो पिंकी बन कर आई
माहौल को रोशन कर गई
बरखा की बूंदे बाहर से निहार रही
अंदर आने को बेकरार हो रही
काली घटा के बीच गुलाबी - गुलाबी
उसे क्या पता
उसकी काली घटा पर छाई है हमारी सुंदरी
घनेरे लहराते - बल खाते केश
उसके पास तो केवल काली घटा
हमारी गुलाबों तो काली और गुलाबी
दोनों में खिलकर और हुई दिलकश
सबकी हसरते भरी निगाहे इस पर
पर बूंदों को अंदर आना मना है
कुम्हला जाए तो , भीग जाए तो
इसे खिली रंगत में ही रहने दो
हँसने और मुस्कराने दो
स्वयं पर गुरूर होने दो

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