Saturday, 12 August 2017

क्या वाकई यह बोझ है????

बोझ ,बोझ ,बोझ
नहीं चाहिए यह बोझ
बचपन में बस्ते का बोझ
फिर पढाई का बोझ
मॉ- पिता की ईच्छाओं का बोझ
कुछ साबित करने का बोझ
फिर गृहस्थी का बोझ
बच्चों की परवरिश
बूढे मॉ- बाप की जिम्मेदारी
बच्चों को काबिल और लायक बनाना
फिर स्वयं की उम्र का बोझ
शरीर अशक्त और लाचार
जीने की ख्वाहिश पर कैसे???
जीवन जीया कैसे बोझ ढोते- ढोते
पर यह क्या वाकई में बोझ है?
या हमारी मजबूरी या हमारी ईच्छा
हम भी तो इसी सब के साथ जीना चाहते हैं
यह बोझ नहीं बल्कि स्वयं की सोच है
इसी को तो जीना कहते हैं यारों

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