Monday, 14 August 2017

कागज से नाता

बचपन में हाथ में पकडा था कागज
तब कागज की नाव बनाते थे
हवाई जहाज और तीर बनाते थे
फिर पाठशाला में जुडा कागज से नाता
वह चलता ही रहा
एक के बाद एक डिग्रियॉ मिलती रही
फिर इंटरव्यु का लेटर तथा नौकरी
आज छात्रों को पढाना और कापियॉ जॉचना
कवि और साहित्यकारों को पढना.
उपन्यास ,कहानियॉ ,कविताएं और नाटक
इनके इर्दगिर्द जिंदगी घूमती रही
अकेलापन का एहसास ही न हुआ
कागज पर लिखी इबादत समझने और समझाने में समय कब गुजरा ,पता ही न चला
बचपन की नाव से लेकर आज जीवन की डायरी लिखने तक
अखबार न पढा तो चैन ही नहीं पडता
कागज के कारण ही समय कट गया
अब भी जीवन जुडा है कागज से
चाहे वह रूपए के रूप में हो
या डॉक्टर की दवाई की पर्ची
यह कागज का खेल जो बचपन से खेला
वह आज तक खेलते ही रहे
उससे नाता कभी न टूटेगा
यह मजबूत जोड है
पानी पडने पर गल भले ही जाय
पर अपनी छाप तो छोड ही जाता है

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