Tuesday, 8 August 2017

जीवन कितना बदल गया

जीवन कितना बदल गया
पहले भेजते थे पत्र ,इंतजार में बीतते थे दिन
अब तो मोबाईल है पल भर की देर भी बर्दाश्त नहीं
पहले गरमी में हाथ से पंखा झलते थे
अब तो फट से ए सी ऑन
पहले बाइस्कोप देखने की दौड
अब तो सोफे पर ही बटन दबाते सब हाजिर
पहले पेड पर चढना ,फल तोडकर खाना
अब तो केवल दृश्य ही बचे है
आम और जामून तो मॉल में बिकते है
पहले दौड और तैराकी करते थे फटेहाल कपडों में
अब तो स्वीमिंग पुल और ब्रांडेड कपडे हैं
पहले घोडागाडी में हिचकोले खाते थे
आज सडक पर बने गढ्ढों में
पहले रोटी में नमक- तेल चुपडते थे
आज बर्गर और मैगी का टेस्ट लेते हैं
पहले धूल और मिट्टी में लोट- लोटकर खेलते थे
आज तो एलर्जी हो जाती है
पहले ऑख भर काजल ,बालों में तेल ,बहती हुई नाक
आज लहराते केश ,फेयर इन लवली का चेहरे पर लेप
पहले स्कूल का बस्ता टांगे नंगे पैर कोसो चलना
आज घर में भी चप्पल से पैर न उतरना
मार खाना और डॉट सुनना तो रोज की बात
छिपकर रोते और खुलकर हँसते
दिन भर मौज- मस्ती करते
रसगुल्ला ,जलेबी ,नए कपडे केवल त्योहरों पर ही
आज तो हर रोज दीवाली पर मन फिर भी खाली
बनावट ,दिखावा न था ,अपनापन था
फेसबुक - वट्सअप न था
फिर भी खुश थे ,जोश से सराबोर थे
अब तो न वह पहले जैसी बातें रही ,न जमाना रहा
सच में जीवन कितना बदल गया

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