Tuesday, 8 August 2017

लो प्रकृति से संदेश , जीवन को करो गुलजार

रात बीती ,सुबह हुई
प्रकृति ने भी ली अंगडाई
हवा चली ताजगी से भरी
पेड- पौधे , पशु- पक्षी भी नींद से जागे
पेड - पौधे मदमस्त हो लगे डोलने
पक्षी भी लगे कलरव करने
भोर हुई सब जागे
होने लगी जग में हलचल
सूर्य की किरणों ने फैलाया उजियारा
अंधेरा दूम दबाकर भागा
रात बीती , नये दिन की शुरूवात हुई
नया सबेरा नई आशा लेकर आया
कहने लगा मुसकाकर
आओ मिलकर जीवन का आंनद लो
अंधेरे और उजाले तो ऑखमिचौली करते रहेगे
जीवन के जो पल मिले है , उसे तो जी भर जी लो
खुशियों को ऑचल में समेट लो
प्रकृति का भी तो यही उसूल है
सब कुछ पीछे छोड ताजी सुबह के साथ पदार्पण करती है
संदेश देती है नव जीवन का
नये सबेरे की शुरूवात की
कब तक अतीत के पन्ने पलटेगे
दुख - पीडा को सीने से चिपटाएगे
सब कुछ तो यही रह जाना है
जीना है तो सार्थक जीए
जीवन बहुमूल्य है यह कोई मत भूले
प्रकृति से सीखे और जीवन को आंनददायी बनाए

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