तालाब में मछलियॉ तैर रही थी
कुछ झुंड में , कुछ यहॉ - वहॉ
पर तैरना जारी था बिना रूके
कुछ की जान भी जोखिम में थी
छोटी के पीछे बडी पडी थी
पर विडंबना यह कि बाहर नहीं आ सकती
बाहर निकलते ही मर जाएगी
तडपकर बिन पानी
पानी ही तो जीवन है उनका
वैसे ही परिवार होता है
कोई कैसा भी हो पर उसे छोड नहीं सकते
अपने ही दुख देते है पर सुख भी तो उनसे ही
बच्चे हमारा मुंह देख ऊब जाय
पर उनको देख कर ही हम जीते हैं
ईश्वर के यहॉ भी सुकुन और चैन न मिलेगा
संतान तो संतान होती है
कैसी भी हो पर ममता तो उससे ही है
सारे सुख हो पर वह पास न हो तो बेकार है
वह तो अपना जीवन जीती है
पर हम तो उसका जीवन जीते हैं
मॉ - बाप बनते ही स्वयं को कहीं छोड देते हैं
यह हर घर और परिवार की बात है
हर पीढी की बात है
हम तो उस मछली की तरह है
जो बाहर नहीं आ सकती
पानी बिना नहीं रह सकती
मॉ - बाप तडपते हैं
बच्चे अपनी जिंदगी जीते हैं
शायद उन्हें यह पता नहीं कि वह भी
इसी चक्रव्यूह में फंस रहे हैं
यह गति तो उनकी भी होनी है
हॉ इस समय दिखाई नहीं पडता
समय तो करवट बदलता ही है
आज हमारी बारी तो कल तुम्हारी
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Tuesday, 31 October 2017
जल बिन मछली
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