Wednesday, 1 November 2017

आह ! ताज नहीं वाह ! ताज कहे

आज मैं बहुत व्यथित हूँ
विवादों से घिरा हूँ
स्वयं को असुरक्षित महसूस कर रहा हूँ
इसमें मेरा तो कोई दोष नहीं है
सदिया बीत गई
प्रेम की निशानी और अमर प्रेम लोगों को भाता रहा
वास्तुशिल्प का अनूठा नमूना
मैं प्रेम का ताज बना रहा
हॉ पर सिसकता भी हूँ
मेरे कारण जान गई
कारिगरों को अपाहिज किया गया
एक बादशाह के प्रेम के जुनून ने
अमर तो शरीर ही नहीं
फिर यह संगमरमर कैसे अमर
यह शुभ्र - सफेद में किसी की आह समाई
मैं तो अपने रूप पर इतराता रहा
विश्व के सात आश्चर्यों में एक बनकर
आज विवाद के कारण स्मृतियों की परते भी खुल रही
मैं मंदिर हूँ या मकबरा
यह भी चर्चा का विषय बना हुआ
तेजोमय मंदिर या ताजमहल
मुझे हिन्दू या मुस्लिम से कुछ लेना- देना नहीं
मैं किसी धर्म का नहीं
कला और कारिगरों की कारिगरी का उत्कृष्ट नमूना
मुझे किसी विवाद में न घसीटा जाय
मैं शांति चाहता हूँ
प्रेम बॉटना चाहता हूँ
हर कोई मुझे सराहे
प्रेम की कसमें खाए
शायद ऊपर से वह गुमनाम कारीगर भी अपनी अमर कृति को देखकर निहारे
प्रसन्न हो और सुकून प्राप्त करे
शाहजहॉ की बेगम मुमताज ही नहीं
हर दिल का मैं अजीज बनू
हर प्रेम करने वाले का प्रेम अमर हो
मैं मृत्यु का पूजन नहीं
जिंददिलों के दिल की धडकन बनू
मैं प्रेमियों के प्रेम का ताज बनू
मैं हर अजीज दिल की आवाज बनू
मैं सौंद्रर्य की पहचान बनू
दुनिया का हर व्यक्ति मुझे अपना आदर्श माने
अपने प्रेम की  हिफाजत करे
उसे अमर बना दे
इस जिंदगी में और जिंदगी के बाद भी
लोग दुख से
  आह! ताज नहीं
बल्कि गर्व से
    वाह ! ताज कहे

No comments:

Post a Comment