Saturday, 18 November 2017

चंदा मामा आ जा ंंंंंंंं

पूर्णिमा का चॉद ,धीरे- धीरे ओझल होता
उसी तरह मायके में कुछ समय के लिए आई बेटी
कविताओं में चॉद का अतुलनीय वर्णन
इस पर तो देखा जाय अंतरिक्ष पर उसका एकाधिकार
बचपन में चंदा मामा की कहानी पढी थी
चरखा कातती बुढिया भी दिखती थी
ल ला ल ला लोरी , दूध की कटोरी का भी लालच
चॉद पर दाग भी लगा है
शांत ,शीतल ,गतिमान ,स्थितप्रज्ञ
पर क्या वाकई वह ऐसा है??
चॉद का स्वभाव सागर जैसा तो नहीं??
जिसकी गहराई को कोई थाह नहीं सकता
नीलाभ आकाश , तारों का साथ.
शीतल रात , घूमक्कडी स्वभाव
कभी दिखना ,कभी ओझल हो जाना
सब पर स्निग्घ चॉदनी फैलाना
जहॉ से देखो वहॉ अपने साथ ही पाना
तुम भी चलो - चलते चलो़
काले बादलों में घिर हो तब भी निकल लो
हर तूफान का सामना करने को तैयार रहो
यही संदेश दे आगे बढता

सबसे प्रिय भी यही है
बच्चा हो या युवा
हर घर में उसकी चर्चा
सुहागिने हो या रमजानी
सबको उसके निकलने की प्रतीक्षा
सोचते हैं एक बार चॉद से मुलाकात तो हो जाय
क्या वास्तव में वह शीतल और सुंदर है
कभी धरती पर उतर आए सचमुच में
उसकी परछाई तो लुभाती है
पर उससे भी मिलने को दिल करता है.
मॉ और मामा तो सबके प्यारे
फिर यह तो सबके मामा
चंदा मामा आ जा..

No comments:

Post a Comment