नोटबंदी को हुआ एक साल
कोई जश्न मना रहा है तो कोई काला दिन
अचानक ऐलान हुआ
आज रात से ५०० -१००० के नोट बंद
होश ही उड गए
देखूं मेरे पास कितने
खर्चा कैसे चलेगा
बेटी की शादी कैसे होगी ??
कल का राशन और दवा कहॉ से आएगा
अस्पताल और डॉक्टर को पैसे कैसे देगे??
रिक्शा और टेक्सी वालों को कैसे देगे
काम पर जाय या कतार में खडे हो??
पूरा - पूरा दिन लाईन में लगे रहे
कभी किसी को मिला
कोई खाली हाथ घर आया
बच्चे ,गृहणी ,बूढे सबको लाईन में खडा कर दिया
अपने ही पैसे के लिए मोहताज
मन मारकर लोग रहे
कितने कतार में लगकर दम तोड गए
यह जश्न उस बात का है क्या??
यह तो उनके परिजनों को घायल करना है
डिजिटल इंडियॉ बनाना है तो कीमत तो चुकानी है
रोजगार गवाकर
उधोग - धंधे बंद कर
जब कमाई ही नहीं तो ए टी एम से क्या निकालेगे
पर जान देकर
उनको कब न्याय मिलेगा
सरकार तो फायदा बताएगी
सत्ता में विराजेगी.
विरोधी ,विरोध प्रर्दशन करेगे
पर जनता तो सिसक रही होगी
उन दिनों को याद कर कॉप जाती होगी
वैसे वक्त हर मरहम का इलाज है
कुछ भूल जाएगे
पर कुछ सारी जिंदगी इनको कोसेगे
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Wednesday, 8 November 2017
नोटबंदी का जश्न और मातम
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