Saturday, 3 February 2018

शिक्षिका बीवी , नहीं रे बाबा

शिक्षिका बीवी , नहीं रे बाबा
पाठशाला के कितने काम तोबा तोबा
सब कुछ ऑनलाईन हो गया
व्हाटसप नें वह मग्न
घर पर भी पाठशाला
सतत कुछ न कुछ लिखती रहती
सरल में जानकारी भरती रहती
न जाने कहॉ खो गई मेरे घर की शोभा
शिक्षिका बीवी नहीं ़़़़़़़़़
मुश्किल में मिलती है रोटी - सब्जी
जवानी में ही दिखने लगी आजी
उसकी नौकरी बनी जी का जंजाल
शिक्षिका बीवी़़़़़़़़़
साहित्य बनाता ज्ञानरचनावादी
उसकी और मेरी है वादावादी
प्रगत महाराष्ट्र के लिए थोडा रूको
शिक्षिका बीवी नहीं रे बाबा

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