Friday, 8 June 2018

खुशी जम कर बरसे

बरखा की बूंदें पड़ी
तपती धरती को खुशी मिली
पर यह बस कुछ समय तक
अब तो तपन और ज्यादा
इन कुछ बरखा से क्या
जब तक जम कर न बरसे
जीवन के दूखी क्षणों मे
क्षणिक सुख से कुछ नहीं
जब तक कि खुशी खुलकर पैर न पसारे
कुछ दुख कभी भूलते नहीं
उनके लिए बडी खुशी की जरुरत होती है
जो उस दुख को भूला.दे
जम कर खुशी बरसे
तब ही गमगीन मन को तसल्ली
जैसे धरती तपी हुई
यह मन भी तपा हुआ
इसकी तपिश साधारण नहीं
बहुत कृपा बरसे
तब जाकर यह मन सरसे

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