Friday, 1 June 2018

मिट्टी से रिश्ता

मिट्टी से कितना मीठा रिश्ता हमारा
अब वह धीरे -धीरे छूट रहा
मिट्टी का वह घर
गर्मी मे भी देता था ठंडी का एहसास
आज वह जगह ईंटों को मिल गई
खुद तपता औरों को भी तपाता
मटका और सुराही
की जगह फ्रिज
ठंडा -ठंडा कूल -कूल
पर पेट और गले की ठंडक
वहाँ तो मटका ही भारी
बिसलरी और प्लास्टिक पर सुराही भारी
कुल्हड़ मे चाय की चुस्कियां
वह मजा औरों मे कहाँ
मिट्टी का बर्तन
मिट्टी के खिलौने
सब हो रहे अदृश्य
बच गया.छोटा सा दिया
पर अब वह भी बुझने की कगार पर
हम मिट्टी से दूर हो रहे
मिट्टी मे खेलने की बजाय मोबाइल से खेल रहे
मिट्टी तो माँ है
सहलाती है , दुलारती है
गिर भी गए तो मुस्कराकर उठा देती है
बारीश मे मिट्टी मे छप -छप करने का मजा
मिट्टी का बना चूल्हा अब कहाँ
मिट्टी सान कर पौधे लगाना
वातावरण को हरा -भरा.बनाना
पशु -पक्षियों का मिट्टी में लोटना
मिट्टी सबको अपने मे समाहित करती
उसी से हम दूरी बना रहे
विकास करना है
पर अपनी माटी को नहीं भूलना है
मिट्टी से ही तो अनाज उपजता है
सबका पेट भरता है
मिट्टी मे ही जीव पनपते
मिट्टी मे ही जीवन पलता
मिट्टी मे ही अंत मे समाता
अपने आगोश मे लेती
शांति की नींद सुलाती
मिट्टी है अनमोल
हम सब है उसके कर्जदार

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