Tuesday, 24 July 2018

संत सूरदास


एक  बार  संत  सूरदास  को  किसी  ने  भजन  करने  के लिए  आमंत्रित  किया । भजनोपरांत  उन्हे  अपने  घर  तक  पहुँचाने  का ध्यान  उसे  नहीं  रहा ।सूरदासजी ने भी  उसे  तकलीफ  नहीं  देना  चाहा  और  खुद  हाथ मे लाठी  लेकर  गोविंद –गोविंद  करते  हुये  अंधेरी  रात  मे पैदल  घर  की ओर  निकल  पड़े । रास्ते  मे  एक कुआं  पड़ता  था ।  वे  लाठी  से  टटोलते –टटोलते  भगवान  का  नाम लेते  हुये  बढ़  रहे  थे  और  उनके  पांव और कुएं  के  बीच  मात्र  कुछ  दूरी  रह  गई  थी  कि उन्हे  लगा  कि  किसी  ने  उनकी  लाठी  पकड़  ली  है ,तब  उन्होने  पूछा  -तुम  कौन  हो ?उत्तर मिला – बाबा ,मैं  एक  बालक  हूँ ।मैं  भी आपका   भजन  सुन  कर  लौट  रहा  हूँ । आपका  भजन  सुनना  मुझे  बहुत  प्रिय  लगता  है । देखा  कि आप गलत  रास्ते  जा  रहे  हैं ,इस  लिए  मैं  इधर  आ  गया । चलिये ,आपको घर  तक  छोड़ दूँ ।‘  तुम्हारा  नाम  क्या  है  बेटा ?-सुरदास  ने  पूछा । ‘बाबा ,अभी  तक  मेरी  माँ  ने  मेरा  नाम  नहीं  रखा  है ।‘’तब  मैं  तुम्हें  किस  नाम से  पुकारूँ ?””कोई भी  नाम  चलेगा  बाबा ॥ “सूरदास   ने  रास्ते  मे  और  कई  सवाल  पूछे । उन्हे  ऐसा  लगा  कि हो न हो ,यह  कन्हैया  है ,।वे  समझ  गए  कि  आज  गोपाल  खुद  मेरे  पास  आए  हैं ।  क्यो  नहीं  मैं  इनका  हाथ  पकड़  लूँ । “यह  सोंच   उन्होने  अपना  हाथ  उस  लकड़ी  पर  कृष्ण की ओर  बढ़ाने  लगे । भगवान  कृष्ण  उनकी  यह चाल  समझ  गए ।सूरदास का  हाथ  धीरे –धीरे  आगे  बढ़  रहा  था ।जब  केवल  चार  अंगुल  का  अंतर  रह  गया  तब श्री  कृष्ण  लाठी  को  छोड़  दूर  चले  गए । जैसे  उन्होने  लाठी  छोड़ी, सूरदास  विह्वल  हो  गए ,आंखो  के  अश्रुधारा  बह  निकली ।  बोले -मैं  अंधा  हूँ ,ऐसे  अंधे  की  लाठी  छोड़  कर  चले  जाना  क्या  कन्हैया  तुम्हारी  बहादुरी  है  और  उनके श्रीमुख  से वेदना  के  यह स्वर  निकल  पड़े–
“बांह  छुड़ाके जात  हैं, निर्बल  जानी  मोही ।
हृदय  छोड़के जाय  तो मैं  मर्द  बखानू तोही

मुझे  निर्बल  जानकार  मेरा  हाथ  छुड़ा कर  जाते  हो, पर  मेरे  हृदय  से  जाओ  तो मैं  तुम्हें  मर्द  कहूँ । भगवान  कृष्ण  ने  कहा–बाबा, अगर  मैं  आप  ऐसे  भक्तो  के  हृदय  से  चला  जाऊं तो  फिर मैं  कहाँ  रहूँ ?
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