Thursday, 13 September 2018

जुर्म का कोई धर्म नहीं

जुर्म तो जुर्म होता है
फिर वह कोई भी करें
अपराधी का धर्म उसका अपराध ही है
वह हिंदू ,मुस्लिम या ईसाई या फिर कोई और हो
उसका पक्षधर होना
यानि उसको बढ़ावा देना
अगर जुर्म किया है तो सजा तो बनती ही है
वह किसका आदर्श. नहीं हो सकता
सारे पाप कर ले
लोगों की जिंदगी से खिलवाड़ कर ले
और फिर उसके प्रति सहानुभूति
वह सुधार गया
इसलिए वह महात्मा हो गया
जुर्म है तो दंड बनता है
धर्म की आड़ लेकर बचाव मे आना
किसी धर्म की बदनामी
वह इस धर्म का है
इसलिए वह ऐसा ही होगा
मजहब नहीं सिखाता
आपस मे बैर रखना
न मारना -काटना
न आंतकवाद फैलाना
न गुंडागर्दी. फैलाना
किसी के धर्म को लेकर
धारणा बनाना
यह तो व्यक्ति का मानव का अपमान

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