Wednesday, 12 September 2018

वह भी क्या दिन थे

उछलते थे कूदते थे
धमालचौकडी करते थे
लड़ते थे झगड़ते थे
बस पैरेंट्स से डरते थे
बचपन बीता
यौवन आया
जवानी की दहलीज पर पैर रखे
रूप का घमंड
अपने आगे सब फीके
न चिंता न भय
बल और शक्ति
उत्साह से सराबोर
जिंदगी मे कुछ कर गुजरने की चाहत
जोश और जिंदादिली
अपने पर गजब का विश्वास
अटल इरादे
सपने साकार करने की जिद
दमखम और गर्व
अब आया बुढापा
कदम डगमगा रहे
आवाज लड़खड़ा रहे
आत्मविश्वास कम हो रहा
हम तो वही
पर समय बदल गया
अब रह गई पुराने दिनों की याद
और कह उठते हैं
वह भी क्या दिन थे

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