Sunday, 23 September 2018

रुकना और झुकना

रूकना और झुकना
यह किसी को भी पसंद नहीं
सबको आगे जाना है
उन्नति करना है
सफलता का परचम फहराना है
कभी कभी कुछ क्षण ऐसे भी. आते हैं
जहाँ यह जरूरी होता है
अगर रास्ते में कुछ खतरा है
तो क्यों हम.थोड़ी देर रूक जाय
सोच विचार ले
रास्तें की अड़चन हटा ले
नहीं संभावना
तो रास्ता ही बदल ले
मुकाम पर पहुंचने के लिए समझौते करना ही पडता है
झुकना भी किसे पसंद??
पर हम झुकते तो है ही
हर छोटी या बड़ी चीज को उठाने के लिए झुकना ही पड़ता है
फिर यह तो संबंध है
आंफिस मे बाँस के आगे झुकना ही है
दिन भर मे न जाने कितनी जगहों पर
फिर अपनों के आगे क्यों नहीं
इनसे कीमती तो कुछ भी नहीं
यहाँ हार मे भी जीत है
हार कर किसी को अपना बना लेना
इससे ज्यादा और क्या ??
अपने गुरूर को दरकिनार कर
समय समय पर
रूक जाय
झुक जाय
तब तो जमाना आपके साथ है

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