मेरी बेटी मेरी शान
मेरी बेटी मेरा अभिमान
यह मेरी जीवन आधार
यह हुई तो मेरा जीवन हुआ साकार
परिवार -समाज मे बढ़ा मान-सम्मान
जीवन बन गया सार्थक
खुशियों की छा गई भरमार
बधाई का लग गया अंबार
लक्ष्मी आई घर चलकर
सरस्वती की हुई कृपा इस पर
यह बडी हुई
पढी लिखी
मेरे सपने हुए साकार
अपने पैरों पर खडी
अपना परचम फहरा रही
आत्मनिर्भर बन
मुझे भी दिला रही विश्वास
बेटी नहीं किसी से कम
आत्मविश्वास से है भरपूर
उसके पंख खुल रहे
ऊंचाई ,अंबर को छू रही
अभी तो शुरू वात है
मंजिल की आस है
रुकना नहीं थमना नहीं
मुझे कुछ नहीं करना है
बस साथ रहना है
उसके गुरूर को कायम रखना है
मेरा कर्म और मेरा धर्म
सब कुछ वह ही है
मेरा असतित्व उसकी बदौलत
बेटी मेरी जान है
वह मेरा अभिमान है
No comments:
Post a Comment