Sunday, 25 November 2018

लड़की हूँ मैं

एक लड़की हूँ मै
तब परेशान भी हूँ
अपनों से नहीं दूसरों से
शिक्षित हूँ
अपने पैरों पर खड़ी हूँ
आत्मनिर्भर हूँ
घर से दूर दूसरे शहर में
पैरेंट्स ने तो भेज दिया
यहां आ काम भी मिल गया
सब व्यवस्थित चल रहा
रहने का भी इंतजाम
करियर उड़ान भर रहा है
पर लोगों की सोच
उसका क्या करू
देर रात को घर लौटती
वाचमैन की भेदती निगाहें
द्वार पर पहुंचते ही पड़ोसी का झांकना
घर मे कोई पुरूष मित्र आ जाए
तो संशय भरी निगाह
उन लोगों का आपस मे देखते ही कानाफूसी
मिलते ही तमाम प्रश्न
यह है हमारा समाज
यह है उनकी सोच
यह बदलाव लाना होगा
किसी के बारे मे कुछ भी धारणा बनाना
यह कब सुधरेगा
इनकी सोच कब बदलेगी
बेटी शिक्षित हो
आगे बढ़े
अपने पंख पसारे
उड़ान भरे
पर यह जो रोड़े है
वे तो हटे
बेटी ही नहीं
हर जनमानस शिक्षित हो
लोग बदलेंगे
तब समाज बदलेगा
नजरिया बदलेगा
तब जाकर विकास का मार्ग प्रशस्त होगा

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