एक लड़की हूँ मै
तब परेशान भी हूँ
अपनों से नहीं दूसरों से
शिक्षित हूँ
अपने पैरों पर खड़ी हूँ
आत्मनिर्भर हूँ
घर से दूर दूसरे शहर में
पैरेंट्स ने तो भेज दिया
यहां आ काम भी मिल गया
सब व्यवस्थित चल रहा
रहने का भी इंतजाम
करियर उड़ान भर रहा है
पर लोगों की सोच
उसका क्या करू
देर रात को घर लौटती
वाचमैन की भेदती निगाहें
द्वार पर पहुंचते ही पड़ोसी का झांकना
घर मे कोई पुरूष मित्र आ जाए
तो संशय भरी निगाह
उन लोगों का आपस मे देखते ही कानाफूसी
मिलते ही तमाम प्रश्न
यह है हमारा समाज
यह है उनकी सोच
यह बदलाव लाना होगा
किसी के बारे मे कुछ भी धारणा बनाना
यह कब सुधरेगा
इनकी सोच कब बदलेगी
बेटी शिक्षित हो
आगे बढ़े
अपने पंख पसारे
उड़ान भरे
पर यह जो रोड़े है
वे तो हटे
बेटी ही नहीं
हर जनमानस शिक्षित हो
लोग बदलेंगे
तब समाज बदलेगा
नजरिया बदलेगा
तब जाकर विकास का मार्ग प्रशस्त होगा
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Sunday, 25 November 2018
लड़की हूँ मैं
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