Friday, 23 November 2018

टेलीफोन की घंटी

वह टेलीफोन था
जब उसकी घंटी घनघनाती
सब इर्द गिर्द इकठ्ठे हो जाते
सबको बात करने की
सुनने की उत्सुकता
हर हाथ मे जाता
हर सदस्य बात करता
जल्दी जल्दी
क्योंकि चार्ज बढता जाता
अब तो मोबाइल
कान मे ही लगा रहता
रास्ते चलते भी
यहाँ तक भी दुर्घटना भी
पर तन मन व्यस्त
गुलाम बन गए हैं लोग
बात करने का जरिया
जानलेवा साबित हो रहा
फोन की मधुर घंटी
कहीं खोते जा रही
फोन इकट्ठा करती थी
मोबाइल अकेला कर रहा है
अनलिमिटेड बात कर सकते हैं
पर अपने दूर हो रहे हैं
सामने रहते हुए भी
निगाह उन पर नहीं
उनसे बात करने की फुरसत नहीं
तब तो वह फोन ही बढिय़ा था

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