Thursday, 15 November 2018

हसरत जो मन मे ही रह गई

मुंबई महानगर मे एक अपना आशियाना
पत्थर के चने चबाने जैसा मुश्किल
पर एक खासियत यह भी
यहाँ कोई भूखा नहीं रहता
किसी रिश्तेदार के माध्यम से आ तो गए मायानगरी
रोजगार का भी इंतजाम
पर घर के रूप मे एक झोपडा
वह भी अपने गहने बेचकर
कहाँ गांव का वह बडा सा घर
कहाँ यह गली कूचो मे बसा हुआ दड़बेनुमा
पास ही सामने नाला बहता हुआ
शौचालय के सामने लंबी कतारें
खैर जिंदगी चल निकली
बच्चों की पढाई लिखाई हुई
आमदनी भी बढ़ी
अब एक इच्छा थी
एक अच्छा वन बी एच के फ्लैट ले लिया जाय
फ्लैट लिया गया
लडके का ब्याह भी हुआ
रहने के लिए नये घर मे आ गए
बहू वहाँ कैसे रहती
सारी जमा पूंजी लगा दी
झोपडा भी बेचा
पर हालात नहीं बदले
एक ड्राइंग रुम
एक बैड रूम
हमे एक गैलरी मे रहने को दे दिया
छोटी सी जिसके मुश्किल से जमीन पर दो लोग सोए
दिन भर बैठकर यहाँ वहाँ काटना
ड्राइंग रुम मे दोस्त वगैरह आएंगे
वहाँ नहीं रहना
घुटन हो रही थी
अपने झोपडे की याद आ रही थीं
कोई सलाह देता
गांव चले जाओ
पर वह भी संभव नहीं
तीस बरसों मे बहुत कुछ बदल गया
वह पुराने लोग नहीं रहे
घर उनका जो वहाँ रहते हैं
इस उम्र मे अब जद्दोजहद नहीं होगी
सोचते हैं
जिंदगी मे क्या बदला
झोपडे से शुरू हुई जिंदगी
गैलरी मे आकर बस गई
हसरत पूरी नहीं हुईं
बल्कि अब खत्म हो गई
हसरतों का शहर मुंबई
उसमें हसरत ही मर गई

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