जीवन जब मिला तब वह कोरी किताब था
हर पन्ना खाली था नया था
हर पन्ने पर कुछ न कुछ लिखा
कुछ बहुत सुंदर
कुछ बेतरतीब
कुछ खराब हो गए
उनको फाड़ कर फेंक दिया
कुछ को मोड़ दिया
कुछ को लाइन मार दी
आज जब वह किताब खोल कर देख रही हूं
तो कुछ धुंधले पड़ गए हैं
कुछ अस्पष्ट हो रहे हैं
कुछ लिखावट समझ में नहीं आ रही है
कुछ अधूरे रह गए हैं
कुछ शुरू ही नहीं हुए
कुछ को मोड़ दिया गया
अब तो कुछ ही पन्ने भरना बाकी है
अब तो अनुभव भी साथ है
सोच रही हूँ
अब हर पन्ना बढ़ियां होगा
संभव है क्या??
नियति करने देगी
जैसे वह आज तक नचा रही थीं
वह कैसे छोड़ देंगी
हम सोचते कुछ
करते कुछ
होता कुछ
सब सोचा विचारा धरा रह जाता है
अनुभव कुछ काम नहीं करता
हम बस पन्ना भरे
हर पन्ना कुछ न कुछ कहता है
कुछ न कुछ सिखाता है
कोरा नहीं छोड़ना
बस भरना
किताब भी पास है उसके पन्ने भी ,स्याही
उंगलियों से खेलना और सही रूप से चलाना
यह तो हमारे हाथ.
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