मैंने कहा फूल से
इतना क्यों मुस्कुरा रहे हो
सूर्ख लाली बिखेर रहे हो
सुंगध फैला रहे हो
फूल ने हंसकर कहा
अरे ,आज मैं खिला हूँ
अपने पूरे शबाब पर हूँ
तितलियों मंडरा रही है
भौरे गुंजार कर रहे हैं
बच्चे देखकर खुश हो रहे हैं
तोड़ने को मचल रहे हैं
युवतियों की भी दृष्टि मेरी तरफ है
बूढी अम्मा भी भगवान पर चढाने के लिए लालायित
माली भी तीव्र दृष्टि से पहरेदारी कर रहा है
मेरी सुरक्षा जो उसकी जिम्मेदारी
मैं हंसा और कहा
बस आज का दिन
कल मुरझाने लगोगे
परसो गिर पड़ोगे डाली से
मिट्टी मे मिल जाओगे
तुम्हारा असतित्व खत्म
इतना इतरा रहे हो तब भी
हाँ , सही है भाई
पर आज क्यों न जी लूं
कल का क्यों सोचू
आज मुस्कुरा लूं
इतरा लूं
वैसे भी दो दिन की जिंदगानी
व्यर्थ मे उदास और दुखी रह गुजारु
यह तो मुझे गंवारा नहीं
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