सर्दियों के दिन
सुनहरी धूप का इंतजार
झांक -झांक कर देखा जाता
धूप आई कि नहीं
सब उसके आगमन को बेताब
धूप मे बैठना है
उसका आनंद लेना है
छोटे बच्चे को लिटाना है
धूप की आवश्यकता जो इस समय सबको है
बदरी और कोहरा जो छाया रहता है
कपड़ें से लेकर अनाज सुखाने तक
धूप तो वही है
पर गर्मियों मे उसका गर्मजोशी से स्वागत नहीं किया जाता
उस समय वह बेहिसाब होती है
लेकिन लोग बचते हैं
यानि
जरूरत से ज्यादा मिले
तब वह बात नहीं रहती
जरूरत है तब तक आपकी कदर
अन्यथा कोई पूछ नहीं
यह जानना है
समझना है
वक्त को स्वीकारना है
सुबह का सूरज
शाम का सूरज
बहुत फर्क
प्रकृति यही तो सिखाती है
मौसम बदलते हैं
मिजाज भी बदलते हैं
जो आज है वह कल नहीं
जीवन की यही तो रीति है
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Saturday, 12 January 2019
जीवन की रीति
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