उपनिषदों में कथा है ययाति की। वह सौ साल का हुआ, उसकी मौत आयी। वह बड़ा सम्राट था। मौत ने आकर उसे कहाः अब आप चलें। वह तो बहुत चौंका। उसने कहाः यह भी कोई बात हुई? अभी तो मैं कुछ भोग ही नहीं पाया। थोड़े दिन और मुझे दे दो। कई बातें अधूरी रह गयी हैं।
मौत हंसी। उसने कहाः वे कभी पूरी नहीं होंगी। लेकिन ययाति ने कहाः एक मौका दो, मैं जल्दी ही कर लूंगा। सौ साल मुझे और दे दो।
तो मौत ने कहाः मुझे किसी को ले जाना तो पड़ेगा। तेरे सौ बेटे हैं, इनमें से किसी एक को जाने के लिए तैयार कर ले, तो मैं तुझे छोड़ जाऊं।
ययाति ने अपने बेटों को बुलाया। उसमें कोई अस्सी साल का था, कोई पचहत्तर साल का, कोई सत्तर साल का। वे भी कई बूढ़े हो गए थे। वे तो सब चुपके बैठे रह गए। वे एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। सब से छोटा बेटा उठकर खड़ा हुआ। उसकी उम्र तो कोई बीस साल से ज्यादा न थी। मौत ने उसके बेटे को कहा नासमझ, तेरे बड़े भाई कोई जाने को राजी नहीं हैं, तू क्यों फंस रहा है?
उस बेटे ने कहाः बड़े भाइयों की बड़े भाई जानें। उनसे पूछ लें आप।
बड़े भाइयों ने कहाः हम क्यों जाएं? जब पिता का सौ साल में जीवन का रस पूरा नहीं हुआ, तो हम तो अभी सत्तर साल ही जीए हैं, कोई साठ ही साल जीया, हमारा रस कैसे पूरा हो जाए? और जब पिता जाने को तैयार नहीं हैं, तो हम क्यों जाने को तैयार हों? अगर जीवन से उनका मोह है तो हमारा भी है। हमारा तो और भी अधूरा रह गया अभी। यह तो हम से कम से कम तीस साल, बीस साल ज्यादा जी लिए हैं। हम क्यों छोड़ें? हम भी पूरा भोगना चाहते हैं।
उस छोटे बेटे ने कहाः यह देखकर कि पिता सौ साल में नहीं भोग पाए, मैं सोचता हूं: रहने से भी क्या सार है! अस्सी साल और धक्के खाने से क्या प्रयोजन है! जाना तो पड़ेगा। तुम सौ साल बाद आओगे। और पिता सौ साल में भी नहीं भोग पाए और रोते हैं, आंसू बह रहे हैं, तो हंसते हुए मैं क्यों न चला जाऊं? मुझे ले चलो। यह बात खत्म हो गयी।
अभी एक ही घटना थी, लेकिन दो दृष्टियां हो गयीं। यही धार्मिक-अधार्मिक आदमी का फर्क है। बड़े भाइयों ने कहा कि हम क्यों जाए, जब यह बूढ़ा जाने को तैयार नहीं है? जब बाप मरने को तैयार नहीं तो बेटा क्यों मरे?
और उनकी बात में तर्क है; संसार का सीधा गणित है। लेकिन दूसरे बेटे की भी बात में बड़ा गणित है; वह परमात्मा का गणित है। वह यह कहता है कि जब सौ साल में इनका काम पूरा नहीं हुआ, तो अब मैं ही और अस्सी साल धक्के क्यों खाऊं? यह काम तो पूरा होनेवाला नहीं है, मेरी समझ में आ गया, मुझे ले चलो, बात खत्म हो गयी।
कहते हैं, बेटे को मौत लेकर चली गयी। सौ साल बाद जब आयी, जब तक ययाति फिर भूल चुका था। सौ साल लंबा वक्त था कि मौत फिर आएगी। जब मौत आयी तो वह फिर कंपने लगा, फिर उसकी आंख से आंसू बहने लगे। मौत ने कहाः अब बहुत हो गया, अब चलो। उसने कहाः लेकिन अभी कुछ भी पूरा नहीं हुआ!
ऐसी कहानी चलती है। ऐसा दस बार होता है। और हर बार ययाति का कोई बेटा मौत ले जाती है। और जब हजार साल पूरे हो गए, दस बार यह घटना घटी और मौत आयी और ययाति फिर रोने लगा, तो मौत ने कहाः अब तो समझो! तुम जिन वासनाओं को पूरा करना चाहते हो, वे स्वभाव से दुष्पूर हैं। तुम्हारी समझ में कब आएगा? तुम बूढ़े होकर भी बचकाने ही बने हुए हो! जिसे तुम पूरा करने चले हो, वह पूरा होता ही नहीं; अधूरा होना उसका स्वभाव है; अधूरा रहना उसका स्वभाव है।
तुमने कोई चीज जीवन में पूरी की? सब अधूरा रहता है; अटका रहता है। कितना ही पूरा करो, अटका रहता है। धन इकट्ठा करो, कितना ही इकट्ठा करो, वासना बनी ही रहती है कि और थोड़ा हो जाता। कितना ही उपाय करो, कुछ कम रहता ही है, भरता नहीं। यह पात्र भरनेवाला नहीं है।
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Friday, 11 January 2019
राजा ययाति की कथा
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