मैं ही शब्द
मैं ही अर्थ
मैं ही एहसास
मैं ही दुनिया- संसार
मैं ही सृजनहार
खेल है शब्दों का
शब्दावली बेशक अलग - अलग
यह उम्र हमें नचाता है
अपना जाल बिछाता है
बाद मे तमाशा भी देखता है
अतीत के भंवर मे गोते लगाता
कानों मे कुछ न कुछ फुसफुसाता
धीरे धीरे हम पर हावी हो जाता
हमें बरगलाता
अपनी गिरफ्त मे कस कर धर लेता
हम छटपटाते रहते
लेकिन बाहर न निकल पाते
भविष्य मे भी गोते लगाते
लगातार उसी पर विचार करते
आने वाले कल की चिंता मे
अपना आज भी दांव पर लगा देते
बेचारा वर्तमान इन दोनों के बीच पीसता रहता
कभी चैन की सांस नहीं लैता
स्वयं को जी ही नहीं पाता
जबकि वह भी जानता है
सत्य केवल वही है
पल भी वही है
समय भी वही है
चलो इस मायाजाल से मुक्त हुआ जाय
अपने शब्दों को कायम रखा जाय
जो हुआ सो हुआ
जो होगा सो होगा
उसमे वक्त नहीं गंवाना है
चाहा - अनचाहा
पसंद - नापसंद
मान - अपमान
इन सबसे परे हटना है
हम जो है वह हमारे शब्दों से हैं
शब्द ही हमारी पहचान है ।
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