तब पैसा न था
समय न था
साथ भी न था
किराए का घर था
आज पैसा भी है
समय भी है
साथ भी है
अपना घर भी है
पर वह बात नही है
उम्र बीत गई
गृहस्थी का जुगाड़ करते
मैं और तुम अलग-अलग
नौकरी के कारण
वर्ष में दो या तीन बार छूट्टी
पर वह भी साथ सुकून से नहीं
जब तुम आते
पर मैं काम पर रहती
शाम को थकी हारी आती
कभी बच्चों की पढाई आड़े
कभी घूमने नहीं गए
रिटायर होने पर जाएंगे
आज वह भी वक्त आ गया
सेवानिवृत्त हो गए
बच्चे बड़़े हो गए
अपना घर हो गया
पर शौक अधूरे ही रह गए
शरीर थक गया है
बीमारियों ने घेर लिया है
कान्फीडेंस रहा नहीं
अब तो रास्ता क्रास करने मे भी डर
जहाँ पहले दौड़ कर बस और ट्रेन पकड़ने वाले
पैर अब खिसकते घसीटते लगते हैं
हाथ कांपते हैं
दृष्टि धुमिल हो चली है
आत्म नियंत्रण कम हो गया है
खर्च को पैसा भी है
पर वह बात नहीं है
हम भी वही
तुम भी वही
पर लोग अजनबी लगते हैं
वक्त जो बदल गया है
जब स्वयं का शरीर ही साथ न दे
तब दूसरों से क्या अपेक्षा
ईश्वर से भी कोई शिकायत नहीं
जीवन है
पर वह बात नहीं है
No comments:
Post a Comment